आज का विषय
एक बार जरुर पढ़े लें
*सही प्रचारकों की पहचान रखो!*
*क्या हमें सही प्रचारकों की पहचान नहीं रखनी चाहिए ?*
*ये विषय क्यों ?*
✍️ *उद्धार पाने के बाद और यीशु के बाद एक विश्वासी के जीवन में एक व्यक्ति जो बहुत जरूरी होता है जो आपको वचन सुनाता है!*
👉 *जब यीशु ये बातें कह चुका, तो ऐसा हुआ कि भीड़ उसके उपदेश से चकित हुई।*
(मत्ती 7:28)
✍️एक भीड़ जिनको सही प्रचार की पहचान थी!
👉उन दिनों में ऐसे लोग (भीड़)भी थे जिन्हें शास्त्रियों और यीशु के प्रचार में से फर्क पता चलता था!
✍️उन दिनों के लोगों को पता चलता था शास्त्रियों का उपदेश और यीशु का उपदेश!
*सूने*:-
👉आज भी शास्त्रियों जैसे प्रचारक हैं!
👉और यीशु जैसे प्रचारक भी है!
👉 *पर वो भीड़ कहां है!*
*सूने*:-
⭐ *मेरा आपसे सीधा सवाल*:-
✍️ *क्या हम को सही प्रचारकों की पहचान नहीं रखनी चाहिए!*
👉क्या हम किसी के धोखे में आ जाते हैं !
👉क्या कोई भी हमें उल्लू बना जाता है!
👉हमें सही प्रचारकों की पहचान रखनी चाहिए!
*सूने*:-
✍️ *पहली सदी की कलिसिया में लोग वचन के पक्के थे*!
👉ये लोग तो थिस्सलुनीके के यहूदियों से भले थे और उन्होंने बड़ी लालसा से वचन ग्रहण किया, *और प्रतिदिन पवित्रशास्त्रों में ढूँढ़ते रहे कि ये बातें ऐसी ही हैं कि नहीं।* (प्रेरितों के काम 17:11)
👉 *परन्तु मैं डरता हूँ कि जैसे साँप ने अपनी चतुराई से हव्वा को बहकाया,* वैसे ही तुम्हारे मन उस सिधाई और पवित्रता से जो मसीह के साथ होनी चाहिए कहीं भ्रष्ट न किए जाएँ।
(2 कुरिन्थियों 11:3)
*सूने*:-
✍️ *तीसरी सदी के बाद कुछ सांप (शैतान के प्रचारक) यीशु की कलीसिया को भ्रष्ठ करते आ रहे हैं!*
👉 *इसलिए यदि उसके सेवक भी धार्मिकता के सेवकों जैसा रूप धरें,* तो कुछ बड़ी बात नहीं, परन्तु उनका अन्त उनके कामों के अनुसार होगा।
(2 कुरिन्थियों 11:15)
✍️ *शैतान के प्रचारको ने आज हजारों गलत शिक्षाएं मसीह के देह में स्थापित कर दी है!*
👉 *पर तुम ने मसीह की ऐसी शिक्षा नहीं पाई।* वरन् तुम ने सचमुच उसी की सुनी, और जैसा यीशु में सत्य है, उसी में सिखाए भी गए। कि तुम अपने चाल-चलन के पुराने मनुष्यत्व को जो भरमानेवाली अभिलाषाओं के अनुसार भ्रष्ट होता जाता है, उतार डालो।
(इफिसियों 4:20-22)
*सूने*:-
✍️कुछ अच्छा काम भी कर रहे उने सलूट है
👉जो वचन की शिक्षा पाता है, वह सब अच्छी वस्तुओं में सिखानेवाले को भागी करे।
(गलातियों 6:6)
👉जो प्राचीन अच्छा प्रबन्ध करते हैं, विशेष करके वे जो वचन सुनाने और सिखाने में परिश्रम करते हैं, दो गुने आदर के योग्य समझे जाएँ।
(1 तीमुथियुस 5:17)
*सूने*:-
*आज हम झूठे और गड़बड़ी प्रचारकों के बाजार में हमें किस किस को नहीं सुनना चाहिए!*
⭐ *जिन्हें वचन की समझ नहीं है यह सबसे ज्यादा खतरनाक प्रचारक होते है!*
✍️गलत शिक्षाओं को लाने में इन्हीं का हाथ है!
👉वैसे ही उसने अपनी सब पत्रियों में भी इन बातों की चर्चा की है जिनमें कितनी बातें ऐसी है, जिनका समझना कठिन है, और अनपढ़ और चंचल लोग उनके अर्थों को भी पवित्रशास्त्र की अन्य बातों के समान *खींच तानकर अपने ही नाश का कारण बनाते हैं*।
(2 पतरस 3:16)
👉 *दसवंश*
👉 *शब्द का दिन मनाना*
👉 *अन्य भाषा*
👉 *महिला पास्टर नहीं बन सकती है*
👉 *पवित्र आत्मा उतर आ*
👉 *निचे गिराना*
👉 *आत्मा में हंसना*
👉 *किसी को आत्मिक पिता बोलना*
⭐ *जो पैसे के लालची प्रचार कलीसिया नोच कर खाने वाले भेड़िए!*
👉अब हे भाइयों, मैं तुम से विनती करता हूँ, कि जो लोग उस शिक्षा के विपरीत जो तुम ने पाई है, फूट डालने, और ठोकर खिलाने का कारण होते हैं,
उनसे सावधान रहो; *और उनसे दूर रहो।* क्योंकि ऐसे लोग हमारे प्रभु मसीह की नहीं, परन्तु अपने पेट की सेवा करते है; और चिकनी चुपड़ी बातों से सीधे सादे मन के लोगों को बहका देते हैं।
(रोमियों 16:17-18)
👉“कोई मनुष्य दो स्वामियों की सेवा नहीं कर सकता, क्योंकि वह एक से बैर और दूसरे से प्रेम रखेगा, या एक से निष्ठावान रहेगा और दूसरे का तिरस्कार करेगा। तुम परमेश्वर और धन दोनों की सेवा नहीं कर सकते।
(मत्ती 6:24)
👉और किसी की रोटी मुफ्त में न खाई; पर परिश्रम और कष्ट से रात दिन काम धन्धा करते थे, कि तुम में से किसी पर भार न हो।
(2 थिस्सलुनीकियों 3:8)
👉ऐसों को हम प्रभु यीशु मसीह में आज्ञा देते और समझाते हैं, कि चुपचाप काम करके अपनी ही रोटी खाया करें।
(2 थिस्सलुनीकियों 3:12)
👉इनका मुँह बन्द करना चाहिए!
👉ये लोग नीच कमाई के लिये अनुचित बातें सिखाकर घर के घर बिगाड़ देते हैं।
(तीतुस 1:11)
👉क्योंकि अध्यक्ष को परमेश्वर का भण्डारी होने के कारण निर्दोष होना चाहिए; न हठी, न क्रोधी, न पियक्कड़, न मारपीट करनेवाला, और *न नीच कमाई का लोभी*। पर पहुनाई करनेवाला, भलाई का चाहनेवाला, संयमी, न्यायी, पवित्र और जितेन्द्रिय हो;(तीतुस 1:7-8)
⭐ *जो मिलावटी प्रचारक है!*
👉 *क्योंकि हम उन बहुतों के समान नहीं, जो परमेश्वर के वचन में मिलावट करते हैं;* परन्तु मन की सच्चाई से, और परमेश्वर की ओर से परमेश्वर को उपस्थित जानकर मसीह में बोलते हैं।
(2 कुरिन्थियों 2:17)
👉इसलिए जब हम पर ऐसी दया हुई, कि हमें यह सेवा मिली, तो हम साहस नहीं छोड़ते। परन्तु हमने लज्जा के गुप्त कामों को त्याग दिया, और न चतुराई से चलते, *और न परमेश्वर के वचन में मिलावट करते हैं,* परन्तु सत्य को प्रगट करके, परमेश्वर के सामने हर एक मनुष्य के विवेक में अपनी भलाई बैठाते हैं।
(2 कुरिन्थियों 4:1-2)
*हमे बहुत सावधान रहना होगा,ऐसों के चक्कर में पड़ गए ,तो गई भैंस पानी में*
*God bless you*
No comments:
Post a Comment